बनारस के प्रमुख कुंड
बनारस और अयोध्या भारत के सबसे पूरातन नगरों में से हैं। पुरातन सांस्कृतियों और ढाँचों को आज भी यहाँ देखा जा सकता है।2500 से 500 ईसा पूर्व तक भारत में जल के लिए कुप या कुंडों का निर्माण किया जाता था। पहले ये मान्यता प्रबल थी की प्रत्येक चीज का मूल जल ही है, जिसके लिये कहा गया है, “जल ही जीवन है।”

हिन्दू संस्कृती में कुंड के, जल, को पविल और शुद्ध माना गया है, और इसका प्रयोग शुद्धिकरण या पवित्रीकरण के लिए किया जाता है। पहले इसका प्रयोग दैनिक कार्यों के लिये भी किया जाता था। लेकिन अब आधुनिक जल संसाधन उपलब्ध होने के कारण कुप या कुण्ड विलुप्त होते जा रहे हैं। काशी (वाराणसी) में आज भी कुछ कुंडों को संरक्षित किया जा रहा है। ऐतिहासिक रूप से शहर में कुल 108 पानी के कुंड दर्ज हैं।
बनारस के तीन प्रमुख कुंड :-
(1.) मणिकर्णिका या चक्रापूष्कराण कुंड :-
पौराणिक कथा की मानें तो तीनों लोकों के कल्याण के लिए राजा राम के के पूर्वज राजा भागीरथ ने गंगा नदी को शिव के जटा और विष्णु के कमल फूल में इसी स्थान पर लाये थे। इसे “स्वर्ग का द्वार” भी कहा जाता है। इस कुंड के पास श्मशान भूमी है जिसे मणिकर्णिका घाट के नाम से जाना जाता है। ये कुंड चारो तरफ से लोहे के रेलिंग से घिरा है, इसका शीर्ष लगभग साठ वर्ग फुट का है। इसे दुनिया का पहला कुंड माना जाता है।
(2.) दुर्गा कुंड :-
वाराणसी के दक्षिण छोर पर देवी दुर्गा का मंदिर मौजूद है। दुर्गा कुंड भी इसी मंदिर का हिस्सा है। माना जाता है की देवी दुर्गा दक्षिण से शहर की रक्षा करतीं है, और एक पौराणिक राक्षस को मारने के बाद उन्होंने इसी मंदिर में विश्राम किया था। यहां देवी दुर्गा को माता कुष्मांडा के नाम से जाना जाता है। केदार खण्ड या पंचकोश जैसी पवित्र यात्रा करने वाले यात्री इस स्थल से गुजरते हैं, और यहां अनुष्ठान करते हैं।